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कर्पूरी ठाकुर ने सबसे पहले दिया OBC आरक्षण:राजीव गांधी को घेरते हुए मंच से पूछा- कमल को अंग्रेजी में क्या कहते हैं

 

 

मैंने फर्स्ट डिविजन से मैट्रिक पास किया, तब गांव में सिर्फ पांच बच्चे ही मैट्रिक पास कर पाए थे। तब बाबूजी नाई का काम कर रहे थे। वे गांव के एक संपन्न आदमी के पास मुझे लेकर गए और कहा कि सरकार ये मेरा बेटा है, फर्स्ट डिवीजन से मैट्रिक पास किया है। उस आदमी ने अपनी टांगें टेबल के ऊपर रखते हुए कहा, ‘अच्छा, फर्स्ट डिवीजन से पास किए हो? मेरा पैर दबाओ।’...

यह किस्सा बिहार के पूर्व सीएम कर्पूरी ठाकुर ने अपने प्रमुख सचिव यशवंत सिन्हा को सुनाया था। दो बार बिहार के मुख्यमंत्री रहे और जननायक नाम से मशहूर कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न से नवाजा जाएगा। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने उनकी 100वीं जयंती से एक दिन पहले 23 जनवरी को यह घोषणा की।

आज भास्कर एक्सप्लेनर में कहानी बिहार के जननायक कर्पूरी ठाकुर की...

 

कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न से सम्मानित करने की घोषणा राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने की। इसके बाद प्रधानमंत्री मोदी ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर अपनी पोस्ट में कर्पूरी ठाकुर को याद किया।

24 जनवरी, 1924 को समस्तीपुर के पितौंझिया में कर्पूरी ठाकुर का जन्म हुआ था। बाद में उनके गांव का नाम कर्पूरीग्राम हो गया। कर्पूरी ठाकुर 6 साल के हुए तो उनका दाखिला समस्तीपुर के ताजपुर मिडिल स्कूल में हुआ। 1933 में उन्होंने 5वीं की परीक्षा पास की।

अगले साल यानी 1934 में मकर संक्राति पर्व के दूसरे दिन बिहार की धरती डोल गई। इतनी तीव्रता का भूकंप था कि हजारों घर ढह गए। बड़ी मात्रा में जान-माल की हानि हुई। बिहार दौरे पर आए गांधी जी ने कहा, 'आज हम सब पर बिना किसी भेदभाव के संकट आया है। यदि आपने और मैंने इस संकट से कोई नैतिक शिक्षा नहीं हासिल की तो हमारी ये उपेक्षा इस संकट से भी बुरी होगी।'

गांधी जी की बातें पढ़कर कर्पूरी ठाकुर बेहद प्रभावित हुए। इसी साल 11 साल की उम्र में उनकी शादी कर दी गई।

मंच से भाषण दिया- केवल थूक देने से अंग्रेजी राज बह जाएगा
छात्र जीवन से ही वे राजनीति में दिलचस्पी लेने लगे थे। वे AISF के अनुमंडलीय मंत्री थे। एक दिन समस्तीपुर के कृष्णा टॉकीज में एक सभा हुई। जिसमें कर्पूरी को भी बोलने का मौका मिला। उन्होंने कहा- हमारे देश की आबादी इतनी ज्यादा है कि केवल थूक फेक देने से अंग्रेजी राज बह जाएगा।

इस भाषण के चलते उनके खिलाफ वारंट जारी हुआ। उन्हें एक दिन की जेल और 50 रुपए जुर्माना लगा। उन्होंने सजा कबूल की और आजादी के आंदोलन में कदम बढ़ा दिया।

 

कर्पूरी ठाकुर 22 दिसंबर 1970 से 2 जून 1971 तक और फिर 24 जून 1977 से 21 अप्रैल 1979 तक बिहार के मुख्यमंत्री रहे। वे बिहार के पहले गैरकांग्रेसी मुख्यमंत्री थे।

पढ़ाई छोड़कर अगस्त क्रांति आंदोलन में कूदे
कर्पूरी ठाकुर ने 1939 में मैट्रिक की परीक्षा पास की। इसके बाद दरभंगा के एक कॉलेज में एडमिशन लिया, लेकिन पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी। वे अगस्त क्रांति में कूद पड़े। 9 अगस्त 1942 को दरभंगा में छात्रों की बैठक हुई। कर्पूरी ने क्रांतिकारी भाषण दिया। उसका असर यह हुआ कि सरकारी भवनों पर तिरंगा फहराने लगा। रेल की पटरियां उखड़ने लगीं।

नेपाल में अंडरग्राउंड रहकर बंदूक चलाना सिखा
अंग्रेज कर्पूरी को खोज रहे थे और वे नेपाल में जाकर अंडरग्राउंड आंदोलन से जुड़ गए। नेपाल में ही उनकी मुलाकात जयप्रकाश नारायण से हुई। उन्होंने नेपाल के सुरंगा पहाड़ में आजाद दस्ते की ट्रेनिंग देखी। नित्यानंद सरदार और गुलेली सरदार ट्रेनर थे। बंदूक चलाना, बम बनाना और चलाना सिखाया जाता था। कर्पूरी ने भी ट्रेनिंग शुरू कर दी।

यहां जयप्रकाश नारायण की सीख काम आई कि हमें बदला नहीं बदलाव चाहिए। हमें युद्ध की कला नहीं, क्रांति का विज्ञान सीखना है। इसके बाद कर्पूरी ने सोशलिस्ट पार्टी जॉइन कर ली।

जेल में शुरू किया आमरण अनशन, अंग्रेजी हुकूमत मांगें मानने पर मजबूर हुई
कर्पूरी, समस्तीपुर के पितौंझिया एक स्कूल से ही आजादी का आंदोलन चलाने लगे। एक रात 2 बजे अचानक पुलिस ने स्कूल घेर लिया। कर्पूरी को उनके साथियों के साथ गिरफ्तार कर लिया गया। एक साल की सजा हुई।

जेल में उन्होंने कैदियों को संगठित किया। धरना प्रदर्शन शुरू हो गया। उन्हें भागलपुर जेल ट्रांसफर कर दिया गया। भागलपुर में आमरण अनशन किया। 29वें दिन जब वे मरणासन्न हुए तो उनकी मांगे मानी गईं।

26 महीने बाद नवंबर 1945 में कर्पूरी की जेल यात्रा समाप्त हुई। कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी के सक्रिय सदस्य बने। नारा दिया- कमाने वाला खाएगा, लूटने वाला जाएगा, नया जमाना आएगा। गांव-गांव में यह नारा गूंजने लगा।

आजादी के बाद पहला चुनाव जीते और फिर जीतते रहे
आजादी के चंद महीने बाद कर्पूरी के नेतृत्व में किसानों की संस्था हिंद किसान पंचायत पूरे बिहार में प्रसिद्ध हो गई। 1952 में पहला आम चुनाव हुआ। लोकसभा के साथ विधानसभा चुनाव भी हुए।

समस्तीपुर के ताजपुर निर्वाचन क्षेत्र से कर्पूरी ठाकुर सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार बने। वे साइकिल और पैदल प्रचार करने लगे। उन्होंने कांग्रेस प्रत्याशी को हराया। तब से 1988 तक वे लगातार बिहार की राजनीति के केंद्र में रहे।

 

कर्पूरी ठाकुर (दाएं से दूसरे) तब बिहार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष थे। उन्होंने विधायकों के साथ राजभवन तक बजट सेशन के स्थगित होने के खिलाफ प्रदर्शन किया था।

जब फटा कोट देखकर यूगोस्लाविया के मार्शल ने गिफ्ट किया कोट
कर्पूरी ठाकुर पर लिखी किताब ‘महान कर्मयोगी जननायक कर्पूरी ठाकुर’ में एक दिलचस्प किस्से का जिक्र है। किताब में उनके बेटे रामनाथ ठाकुर कहते हैं, ‘विधायक बनने के बाद की बात है। एक प्रतिनिधिमंडल में के साथ जननायक को ऑस्ट्रिया जाना था, लेकिन उनके पास कोट ही नहीं था। वे एक दोस्त से कोट मांगकर ऑस्ट्रिया गए। उसके बाद वहां से यूगोस्लाविया गए तो मार्शल टीटो ने देखा कि उनका कोट फटा हुआ है।’

इसके बाद उन्होंने कर्पूरी ठाकुरी को एक कोट गिफ्ट किया था।

कर्पूरी ठाकुर से जुड़ा एक और दिलचस्प किस्सा है… वे जब पहली बार उपमुख्यमंत्री बने तो अपने बेटे रामनाथ को खत लिखा। इसका जिक्र उनके बेटे रामनाथ ने एक इंटरव्यू में करते हुए कहा कि खत में तीन बाते ही लिखी होती थीं- ‘’तुम इससे प्रभावित नहीं होना। कोई लोभ लालच देगा, तो उस लोभ में मत आना। मेरी बदनामी होगी।’’

जब प्रधानमंत्री चरण सिंह को कर्पूरी ठाकुर के घर के दरवाजे से चोट लगी
प्रधानमंत्री चरण सिंह एक बार कर्पूरी ठाकुर के घर आए। उनके घर का दरवाजा इतना छोटा था कि चौधरी चरण सिंह को सिर में चोट लग गई। इस पर चरण सिंह ने कहा, ‘कर्पूरी, इसको जरा ऊंचा करवाओ।’ उधर से कर्पूरी का जवाब आया, ‘जब तक बिहार के गरीबों का घर नहीं बन जाता, मेरा घर बन जाने से क्या होगा?’

 

यह तस्वीर 1979 की है। बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर (बाएं), हरियाणा के तब के मुख्यमंत्री चौधरी देवीलाल और पंजाब के तब के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल (दाएं)।

जब मंच से पर्ची लिखकर पूछा कमल को अंग्रेजी में क्या कहते हैं
एक बार मंच से कर्पूरी ठाकुर भाषण दे रहे थे। इस दौरान बोफोर्स घोटाले पर राजीव गांधी के स्विस बैंक के खाते का जिक्र कर रहे थे। भाषण के दौरान ही उन्होंने धीरे से एक पर्ची पर लिखकर पूछा कि ‘कमल’ को अंग्रेजी में क्या कहते हैं। लोकदल के तत्कालीन जिला महासचिव हलधर प्रसाद ने उस स्लिप पर ‘लोटस’ लिख कर कर्पूरी की ओर बढ़ाया। इसके बाद उन्होंने कहा, ‘राजीव मने कमल, और कमल को अंग्रेजी में लोटस बोलते हैं। इसी नाम से स्विस बैंक में खाता है राजीव गांधी का।’ .

जब अंग्रेजी में फेल स्टूडेंट्स का मजाक कर्पूरी डिवीजन से पास कहकर उड़ाया जाता था
1967 में पहली बार उपमुख्यमंत्री बनने पर उन्होंने अंग्रेजी की अनिवार्यता को खत्म किया। इसके चलते उनकी आलोचना भी हुई। तब अंग्रेजी में फेल मैट्रिक पास लोगों का मजाक 'कर्पूरी डिवीजन से पास हुए हैं' कह कर उड़ाया जाता था।

ओबीसी के लिए आरक्षण देने वाला पहला राज्य बना बिहार
1970 में कर्पूरी ठाकुर पहली बार मुख्यमंत्री बने। उनकी सरकार महज 163 दिन ही चली। 1977 में वे दोबारा मुख्यमंत्री बने तो एस-एसटी के अलावा ओबीसी के लिए आरक्षण लागू करने वाला बिहार देश का पहला राज्य बना।

1978 में बतौर सीएम कर्पूरी ठाकुर ने बिहार में कई स्तरों पर लागू होने वाला आरक्षण लागू किया। इस कोटा व्यवस्था में कुल मिलाकर 26% आरक्षण दिया गया। इनमें 12% आरक्षण अन्य पिछड़ा वर्ग यानी OBCs के लिए था, OBCs में शामिल आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग यानी EBCs को 12% आरक्षण दिया गया। वहीं 3% आरक्षण महिलाओं को और सवर्ण जातियों में शामिल आर्थिक रूप से पिछड़ों को 3% आरक्षण भी इस व्यवस्था में शामिल था।

खास बात यह कि आरक्षण की इस व्यवस्था का भारतीय जनसंघ भारी विरोध कर रहा है, जबकि जनसंघ उस समय की जनता पार्टी सरकार की मुख्य हिस्सेदार थी।

इससे जुड़ा एक किस्सा है। 1990 की बात है। बिहार में खगड़िया जिले में लालू प्रसाद यादव भाषण दे रहे थे। इसमें उन्होंने कर्पूरी ठाकुर का जिक्र करते हुए कहा- ‘जब कर्पूरी जी आरक्षण की बात करते थे, तो लोग उन्हें मां-बहन-बेटी की गाली देते थे। और, जब मैं रेजरबेसन (रिजर्वेशन) की बात करता हूं, तो लोग गाली देने के पहले अगल-बगल देख लेते हैं कि कहीं कोई पिछड़ा-दलित-आदिवासी सुन तो नहीं रहा है।’

 

तस्वीर 1988 की है। पटना में कर्पूरी ठाकुर को श्रद्धांजलि देने के लिए सर्वदलीय बैठक हुई थी। इसमें पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहार भी मौजूद थे।

कर्पूरी ठाकुर को लेकर बिहार में राजनीति गर्म है…
12 जुलाई 2022 को बिहार विधानसभा भवन बनने के 100 साल पूरे होने के मौके पर राजद नेता तेजस्वी यादव ने कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने की मांग की थी। हाल के कुछ सालों में जनता दल (यूनाइटेड) ने बिहार में बड़े में पैमाने पर कर्पूरी ठाकुर की जयंती मनाने पर जोर दिया है। पटना से लेकर बिहार के समस्तीपुर में उनके गांव पितौझिया तक हुए कई कार्यक्रमों में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार शामिल हो चुके हैं।

कर्पूरी ठाकुर की जयंती समारोह मनाने को लेकर बिहारी बीजेपी और जदयू के बीच टकराव भी है। बिहार बीजेपी अध्यक्ष सम्राट चौधरी का आरोप है कि पटना के मिलर हाईस्कूल का मैदान बीजेपी की रैली के लिए अलॉट था, लेकिन ऐन मौके उसे जदयू को दे दिया गया। अब जदयू इसी मैदान में 24 जनवरी को कर्पूरी ठाकुर की जयंती पर बड़ा कार्यक्रम करने जा रही है।

चौधरी ने कहा कि अगर मैदान बीजेपी नहीं दिया गया, तो पार्टी अपने कार्यक्रम बीरचंद पटेल मार्ग पर आयोजित करेगी। वहीं, कर्पूरी ठाकुर का जन्मदिन जदयू और राजद के कार्यालयों के सामने मनाया जाएगा।

लोकसभा चुनाव के लिहाज से बिहार में अति पिछड़ा जातियों की खास भूमिका है। सभी पार्टियां इन्हें लुभाने में जुटी हैं। ऐसे में सामाजिक न्याय के हीरो माने जाने वाले कर्पूरी ठाकुर का महत्व और ज्यादा बढ़ गया है।

2023 में हुई जातीय जनगणना के अनुसार बिहार अति पिछड़ा वर्ग यानी EBCs 36.02% आबादी के साथ सबसे बड़ा समुदाय है। इसके बाद अन्य पिछड़ा वर्ग यानी OBCs की आबादी 27.13% और अनुसूचित जातियों यानी SCs की 19.66% आबादी है।

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